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खलनायिकाओं की शान, जिसकी एक कांटे ने ली जान

हिंदी फिल्मों के शुरुआती दौर की खलनायिकाओं में कुलदीप कौर की अपनी शान थी। शादीशुदा कुलदीप और शादीशुदा प्राण लंबे समय तक अच्छे मित्र रहे। विभाजन के दौरान दोनों लाहौर छोड़ मुंबई आए, जहां कुलदीप ने 1948 से लेकर 1960 तक फिल्मों में काम कर अपनी एक अलग जगह बनाई। 1947 के दंगों में प्राण की छूट गई कार को लाहौर से चला कर मुंबई तक पहुंचाया था कुलदीप कौर ने, जिनकी मौत मात्र एक कांटा गड़ने से हुई थी।

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