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बदलाव की बयार, केंद्र में आया घर-परिवार

राजीव सक्सेना

अपराध की तमाम विधाओं को तोड़-मरोड़ कर लगातार तीन बरस तक दिखाने के बाद ओटीटी प्लेटफार्म को अब आखिर परिवार के भीतर झांकने और रोजमर्रा की उलझनों, सुख-दुख से वाबस्ता होना पड़ा है। हिंसा, मार-धाड़, नशा, उन्मुक्त जीवन शैली के बीच अब देश के उच्च मध्यवर्गीय या मध्यवर्गीय परिवारों की छोटी-बड़ी परेशानियों, उनकी अपनी ही गतिविधियों, मान्यताओं, विडंबनाओं के ताने-बाने को खूबसूरत पटकथा में पिरोती हुई कुछेक उम्दा वेब शृंखलाओं ने हाल ही में दर्शकों के एक वर्ग को चिलचिलाती गर्मी में ठंडक की तरह सुकून पहुंचाने का सफल प्रयास किया है।

अमूमन, सिनेमा, टेलीविजन के बड़े सितारों से सजी-धजी असंख्य वेब सीरीज के बीच अपेक्षाकृत कम दिखाई देने वाले या नवोदित कलाकारों को लेकर बनाई गई सीरीज गुल्लक, सुतलियां और अनंथम की स्ट्रीमिंग ने, सहज-सरल, स्वस्थ मनोरंजन के शौकीन दर्शकों को जो राहत दी है, उसे सुखद पहल के रूप में देखा जा सकता है। खास कर इस सिलसिले में भी, कि नये माध्यम का सदुपयोग भी किया जा सकता है.

गुल्लक

उत्तर प्रदेश के लखनऊ और कानपुर की बोली, संस्कृति और सामाजिक परिवेश को लेकर कितनी ही पटकथाएं बड़े और छोटे पर्दे पर अब तक रची-बुनी जा चुकी हैं। सोनी लिव पर गुल्लक सीरीज ने पिछले दिनों इसमें एक सर्वथा नया आयाम जोड़ा है। शहर की घनी आबादी के बीच बसे भूल भुलैया सरीखे मुहल्ले में अपनी ही तरह से गुजर-बसर कर रहे मध्यम वर्ग के एक परिवार में मुखिया सरकारी बिजली बोर्ड का अदना सा कर्मचारी है, जिसे एक तयशुदा आर्थिक समीकरण के कारण बीवी और दो बेटों के छोटे से परिवार की गाड़ी को किसी तरह अंजाम तक ले जाना है।

बड़े बेटे को पढ़ाई पूरी करने के बाद बेरोजगारी के आलम में स्वाभाविक तौर पर स्थानीय छुटभैये, गली-नुक्कड़ नेताओं की स्थानीय राजनीति आकर्षित करती है। किसी तरह इस दलदल से बचते-बचाते एक कामचलाऊ नौकरी पाकर परिवार की बिगड़ी हालत को संभालने में वह अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर पाता है। छोटा बेटा उच्च माध्यमिक स्तर की पढ़ाई में कला और विज्ञान की उलझनों में उलझा है।

गुल्लक की कहानी में मझोेले शहरों के मोहल्लों की आम जिंदगी, अड़ोस-पड़ोस के तमाम चोचलों, सामाजिक मजबूरियों का खूबसूरत तरीके से सार्थक इस्तेमाल किया गया है। शीर्षक गीत, सूत्रधार शैली में पार्श्वस्वर, निर्देशन, अभिनय सभी सधे हुए हैं। अमृतराज गुप्ता के निर्देशन में रंगमंच के अभिनेता जमील खान ने संतोष मिश्रा के किरदार में और गीतांजलि कुलकर्णी ने मध्य वर्ग की गृहणी की भूमिका को शिद्दत से निभाया है। बेटों के किरदार में वैभवराज गुप्ता और हर्ष मयार ने पूरा न्याय किया है। बिट्टू की मम्मी के दिलचस्प चरित्र को अभिनेत्री सुनीता राजभर ने ईमानदारी से निभाया है। तीन सफल सीजन पूरे कर चुकी शृंखला गुल्लक को पहले ही सीजन में कई पुरस्कार मिलना इसकी कसावट का प्रमाण ही हैं।

सुतलियां

परिवार के मुखिया के नहीं रहने के बाद हर मामले में त्वरित निर्णय लेने, पुश्तैनी सम्पत्ति से अलगाव, रिश्तों में स्वार्थ की तलाश सरीखी विषमताओं को सोनी लिव की वेब शृंखला सुतलियां की विषयवस्तु में शामिल कर पटकथा में बेहद खूबसूरती से पिरोया गया है। एक नहीं अनेक वजहों से यह सीरीज हर वर्ग के दर्शकों के देखने योग्य बन पड़ी है।

भोपाल मध्यप्रदेश की पृष्ठभूमि में एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार के सदस्य मुखिया की मौत के बाद दिवाली पर पहली बार एक साथ इकट्ठे हुए हैं। सबसे बड़े बेटे के अपने व्यापार-व्यवसाय में हुए नुकसान, बाहर रहकर पढ़ रही बेटी की अपनी ही व्यक्तिगत उलझनें और सबसे छोटे बेटे की करिअर को लेकर अनिश्चितता के समीकरणों को सुलझाने की तकरीबन नाकाम कोशिश में विधवा मां के समझौतों से जुड़ा दिलचस्प कथानक रचा गया है सुतलियां में। पर्दे पर नवअवतरित अभिनेत्री, रंगमंच कलाकार आयशा रजा मिश्रा ने मां की मुख्य भूमिका के माध्यम से पूरी सीरीज को सुंदर तरीके से संभाला है। उनके अलावा अभिनेता सुनील सिन्हा, विवान शाह, शिव पंडित, निहारिका लायरा दत्त, निखिल नागपाल, दिशा अरोरा और विवेक मुश्रान ने भी अपने-अपने किरदार को जीवंत करने में कसर नहीं छोड़ी।

आनंथम

जी फाइव पर दक्षिण की निर्देशक वी प्रिया की तमिल वेब शृंखला आनंथम का हिंदी वर्जन देखना एक अलग अनुभव रहा। शीर्षक का शाब्दिक अर्थ हिंदी में आनंद से लगाया जा सकता है। यह एक बंगले की कहानी है, जिसमें खुद बंगले के माध्यम से इसमें रहने वाले विभिन्न परिवारों से जुड़ी उतार-चढ़ाव की उपकथाओं को एक लड़ी में पिरोया गया है। दक्षिण के किसी महानगर में, शहर से दूर एक भव्य बंगले को उसके मालिक ने उसकी तमाम सुविधाओं, फर्नीचर आदि के साथ किराए पर देने की गर्ज से रखा हुआ है।

शुरुआती कहानी में, उसमें रहने वाले परिवार के प्रमुख को दिल का दौरा पड़ने पर अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में कुछ दिन बिताने पड़ते हैं। इसी दौरान पिता से नाराज, अलग रह रहे, उसके बड़े बेटे, जो लेखक है, को अपनी पुस्तक के विमोचन के सिलसिले में अपने बचपन के शहर में आना होता है। छोटे बेटे की पहल पर लेखक बेटा पिता का हाल जानने अस्पताल आने और कुछ समय पुश्तैनी बंगले में बिताने को राजी होता है।

एक बंगले के जरिये, जीवन के कड़वे-मीठे सच को वेब शृंखला में बेहद सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने में निर्देशक शत प्रतिशत कामयाब हुई हैं। जिंदगी की कशमकश में गले -गले डूबी आज की पीढ़ी के कतिपय नवगठित परिवारों के लिए इस तरह की पटकथाएं कितनी ही सीख और सकारात्मक सन्देश लिए होती हैं।

निर्देशन के अलावा मंझे हुए कलाकारों के अभिनय ने भी वेब सीरीज ‘आनंथम’ को अंत तक रोचक बनाते हुए बांधे रखा है। दक्षिण भारतीय संस्कृति की विविधरंगी झलक से रु ब रु होने का एक मौका भी शेष भारत या बाहर रहने वाले दर्शकों को इसमें मिलता है। दक्षिण के दिग्गज सिने अभिनेता प्रकाश राज की खलनायक वाली छवि से अलग एक धीर-गंभीर अधेड़ किरदार को पूरी संजीदगी के साथ जीते हुए देखना इस सीरीज की खासियत है।



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