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हिंदी फिल्मों के अभिनेता बनते जा रहे हैं निर्माता

गणेश नंदन तिवारी

जब कोई हीरोइन या हीरो शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचता है तो सबसे पहले उसके दिमाग में यही बात आती है कि उसे लेकर फिल्म बनाने वाला निर्माता या कंपनी करोड़ों-अरबों कमा रही है, तो यह काम वह खुद ही क्यों न करे। निर्माता बनने में लाख झंझटें होती हैं, फिर भी कलाकार निर्माता बनना चाहते हैं। बॉलीवुड में कलाकारों के निर्माता बनने के बढ़ते चलन के कारण आज स्थापित निर्माता-निर्देशक भी हिट हीरो को साइन नहीं कर पा रहे हैं। उनकी कंपनियां हाशिए पर जा रही हैं और कॉरपोरेट कंपनियों के लिए जगह बन रही है।

दस साल फिल्मों में अभिनय कर 27-28 साल की उम्र में आलिया भट्ट फिल्म निर्माता बन गई। आलिया पहली अभिनेत्री नहीं हैं जिन्होंने अपनी फिल्म कंपनी बनाई। अनुष्का शर्मा, शिल्पा शेट्टी, दिया मिर्जा, अमीषा पटेल, प्रीति जिंटा, मनीषा कोइराला, पूजा भट्ट से लेकर स्वप्न सुंदरी हेमा मालिनी तक निर्माता बनीं। और अभिनेता तो मानो फिल्मजगत में निर्माता बनने के लिए ही आते हैं। वर्तमान में बॉलीवुड का कोई ऐसा सफल हीरो नहीं है, जिसकी अपनी फिल्म कंपनी नहीं है।

जब सभी हिट हीरो निर्माता हैं तो वे दूसरे निर्माताओं की फिल्मों में काम क्यों करेंगे? इसीलिए इन दिनों निर्माताओं को हिट हीरो की तारीखों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। नामीगिरामी निर्माता भी आज शाहरुख, आमिर या सलमान को अपनी फिल्म के लिए साइन नहीं कर पा रहे हैं। इसी चलन के कारम देखते ही देखते अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल से लेकर सुभाष घई की मुक्ता आटर््स जैसी कंपनियां हाशिए पर आ गर्इं। सूरज बड़जात्या की कंपनी राजश्री प्रोडक्शन को अगली फिल्म बनाने में पांच साल लग रहे हैं। स्टार कहां हैं, किसे साइन करें, किसके नाम से फिल्म बिकेगी और चलेगी। हर हीरो के निर्माता बनने के कारण बॉलीवुड के सामने अलग तरह का संकट खड़ा हो रहा है।

हीरो को हिट होते ही निर्माता बना देना बॉलीवुड की नियति है। मनोज कुमार दो लाख रुपए कमाने फिल्मों में आए। हीरो के बाद निर्माता बन गए। 1928 में फिल्मों में आए पृथ्वीराज कपूर 16 साल बाद पृथ्वी थियेटर खड़ा कर लेते हैं। फिल्मों में जबरदस्ती धकेले गए अशोक कुमार 13 साल मुंह पर मेकअप लगाने के बाद 1949 की ‘महल’ से निर्माता बनते हैं। 17 साल अभिनय के बाद दिलीप कुमार बतौर निर्माता ‘गंगा जमुना’ बनाते हैं। 13 साल एक्टिंग करने के बाद राज कपूर ‘आग’ बनाते हैं और आरके स्टूडियो की नींव रख देते हैं।

अमिताभ बच्चन 26 साल अभिनय करने के बाद निर्माता बन जाते हैं। राजेश खन्ना 19 साल बाद अपनी कंपनी खोल लेते हैं। ये सभी उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं जिसने अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी के खलनायक परशुराम से लेकर हिट हीरो भगवान दादा जैसे कलाकारों को अंतिम समय में फाकाकशी करते देखा। सबसे सयाने निकले देव आनंद। उन्होंने पांचवे साल में खुद की कंपनी खोल ली थी। इतनी तेजी से बॉलीवुड का कोई भी अभिनेता निर्माता नहीं बना। देव, दिलीप, राज की तिकड़ी के बाद आई पीढ़ी के अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, अनिल कपूर, सनी देओल, जैकी श्रॉफ ही नहीं गायक मुकेश और कॉमेडियन मोहन चोटी से लेकर महमूद तक सभी अभिनेता से निर्माता बने।

इन दिनों बॉलीवुड में बढ़ रहे इस चलन से उन कॉरपोरेट कंपनियों की मुसीबत हो गई जो निवेश करने बॉलीवुड में उतरीं। मजबूरी में इन कंपनियों ने नामी स्टारों के साथ साझेदारी में फिल्में बनाना शुरू किया। फिर उन्होंने प्रतिभाशाली और नामी निर्देशकों को भी अपनी कंपनी में साझेदार बना उन्हें निर्माता बना दिया। एक तरह से बॉलीवुÞड में इन दिनों सब कुछ गड्डमड्ड है।

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