फिल्म समीक्षा- तड़प: पागलपन वाला प्यार
इस फिल्म से एक और स्टारपुत्र का पदार्पण बतौर हीरो हो गया। ये हैं अहान शेट्टी, जो सुनील शेट्टी के पुत्र हैं। अहान को फायदा यह है कि सुनील शेट्टी मझौले किस्म के स्टार थे इसलिए अहान को कोई बड़ी रेखा नहीं लांघनी है। ‘तड़प’ सफल तेलगु फिल्म ‘आरएक्स 100’ का हिंदी रीमेक है। अपने मिजाज में यह बहुत कुछ फिल्म ‘कबीर सिंह’ की तरह है यानी प्रेमिका को पाने के लिए साइको हो जाने का मामला है। स्वाभाविक है कि इसकी तुलना ‘आरएक्स 100’ से होगी और ज्यादातर लोगों को ये उससे कमजोर लगेगी।
ईशान (अहान शेट्टी) मसूरी में अपने डैडी (सौरभ शुक्ला) के साथ रहता है जो उसका वास्तविक पिता नहीं है। यानी अहान अनाथ है लेकिन पिता वाला प्यार उसे मिला है। शहर में दामोदर नौटियाल (कुमुद मिश्रा) नाम का नेता है जिसके लिए ईशान काम करता है। एक दिन दामोदर की लंदन में पढ़ने वाली बेटी रमिसा (तारा सुतारिया) से ईशान की मुलाकात होती है और फटाफट मामला ‘आइ लव यू’ वाला हो जाता है। लेकिन लड़की के नेता पिता को यह मंजूर नहीं और यहीं से शुरू होता है तनाव जिसमें कई तरह के लफड़े, झगड़े और हिंसक गतिविधियां शामिल हैं।
सवाल है कि ईशान और रमिसा एक दूजे के होंगे या वह किसी और की होगी, यही इस फिल्म का मूल मसला है। हालांकि यह विषय कई फिल्मों में आया है लेकिन ‘तड़प’ उन सबसे इस मामले में अलग है कि इसमें ईशान का जो चरित्र है वह पागल और परपीड़क की हद तक जुनूनी है और कई मामलों में स्त्री विरोधी भी। एक एंटी हीरो जैसा हीरो जो सामाजिक कायदे कानून को नहीं मानताष बस किसी भी कीमत पर प्रेमिका चाहिए। कहानी में घिसापिटापन है लेकिन फिल्म की मेकिंग नई शैली की है।
अहान शेट्टी के बारे में कम से कम ये तो कहना होगा कि अपने पिता की तुलना में वे अधिक प्रतिभाशाली हैं। तारा सुतारिया भी औसत से कुछ अधिक अच्छी हैं लेकिन ग्लैमर वैसा नहीं है कि युवा लोगों के दिलों की धड़कन बन जाएं। मध्यांतर के पहले फिल्म कुछ ढीली है लेकिन उसके बाद रफ्तार पकड़ती है। फिल्म युवाओं को ध्यान में रख कर बनाई गई है।
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