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वेब सीरीज की पैनी नजर अब टीवी पत्रकारिता और साइबर अपराध पर

राजीव सक्सेना

ओटीटी की वेब शृंखलाओं की कहानियों में कुछ न कुछ नएपन के लिए तमाम चैनलों में इन दिनों होड़ सी लगी हुई है। नौजवान, उत्साही प्रमुख, मुंबई के व्यावसायिक पटकथा लेखकों से अलग हटकर लिखने की फरमाइश कर रहे हैं। इसका नतीजा हैं विगत सप्ताह, टीवी पत्रकारिता और साइबर अपराध को लेकर प्रदर्शित हुर्इं दो वेब सीरीज…

द ब्रोकन न्यूज

दो-ढाई दशक में भारतीय टीवी पत्रकारिता ने कई सारे बदलाव देखे हैं। शुरुआत तो अक्सर बेहतर ही होती है, लेकिन किसी मिशन में अगर व्यावसायिक तड़का लग जाए तो प्रतिस्पर्धा गुणवत्ता की न होकर टीआरपी या प्रति पल बढ़ती दर्शक संख्या पर जाकर रुकना स्वाभाविक है। विनय वैकुल निर्देशित द ब्रोकन न्यूज दो काल्पनिक समाचार चैनलों आवाज भारती और जोश 24 की, एक दूसरे से खुद को अव्वल साबित करने की दिलचस्प कहानी पर आधारित जी फाइव की वेब शृंखला है।

एक ही इमारत में अलग-अलग तलों पर मौजूद दो समाचार चैनलों के प्रमुख संपादक एकदम विपरीत विचारधारा के संवाहक हैं। आवाज भारती की संपादक अमीना कुरैशी अपने सिद्धांतों पर चलते हुए खबरों से किसी तरह के कोई समझौते के पक्ष में नहीं है, जबकि जोश 24 के संपादक दीपांकर सान्याल की फितरत, समाचार को सनसनी से जोड़ते हुए किसी भी हद से गुजरने में गुरेज नहीं करने की है।

दोनों चैनलों के संचालक अपने-अपने व्यावसायिक मकसद की पूर्ति के लिए अपने खबरनवीसों पर दबाव बनाने के मामले में कतई अलग नहीं हैं। तीसरा चेहरा इन दोनों चैनलों के उन जुझारू पत्रकारों का है जो अपने हुनर के सदुपयोग के जरिये अच्छी और सामाजिक सरोकार से जुड़ी जरुरी खबरें खोजने के लिए कृत संकल्पित रहा करते हैं। सुखद रहा यह देखना कि पटकथा लेखक ने ऊंचे स्तर की लड़ाई में खोजी पत्रकारिता की विधा के अस्तित्व को भी बखूबी उजागर किया।

द ब्रोकन न्यूज शृंखला, देश की प्रगति में दीमक बन चुकी सत्ता की राजनीति को भी शिद्दत से बेनकाब करती है। कई मामलों में, इलेक्ट्रानिक मीडिया का राजनितिक हित साधने में इस्तेमाल भी गौरतलब है। कुछ बरस पहले देश के चर्चित नीरा राडिया टेप कांड का भी स्मरण कराती है। ये वेब सीरीज इस शृंखला को एक ब्रिटिश टीवी सीरीज द प्रेस से प्रभावित भी कहा जा रहा है।

वेब सीरीज द ब्रोकन न्यूज निर्देशन में कसावट की वजह से भी पसंद की जा सकती है और अभिनय की दृष्टि से भी। चैनल संपादक की भूमिका में 90 के दशक की अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे को देखना सुखद रहा। प्रबंधन और प्रतिबद्धता के बीच के तनाव को सोनाली ने खूबसूरती से जीया। जयदीप अहलावत की बाडी लैंग्वेज, एक मशहूर लेकिन ईगो वाले पत्रकार के चरित्र का सही रेखांकन करने में सफल साबित हुई। श्रिया पिलगांवकर ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। किरण कुमार और आकाश खुराना इन दोनों चैनलों के संचालकों की भूमिका में फिट साबित हुए।

साइबर वार

ओटीटी प्लेटफार्म वूट पर विगत सप्ताह प्रदर्शित वेब शृंखला साइबर वार मुंबई महानगर में डिजिटल संसाधनों की आड़ में दिन दूने बढ़ रहे अपराध की रोकथाम के प्रयास पर आधारित है। दिमाग में तमाम तरह के फितूर पाले हुए कुंठाग्रस्त लोगों ने, इधर कुछ बरस में अपराध के नए तरीके ईजाद किए हैं। इनमें डिजिटल क्रांति उनकी मददगार साबित हो रही है। इनमेँ निजता का उल्लंघन, बैंकिंग स्कैम सरीखे अपराध शामिल हैं जो इंटरनेट के सहयोग से अंजाम दिए जाते हैं। देश भर में पुलिस महकमे के तहत अब साइबर क्राइम के निराकरण की गर्ज से अलग शाखाओं का गठन किया गया है।

कहानी के मुताबिक मुंबई पुलिस इस तरह के अपराध पर नकेल कसने के उद्देश्य से एक खास टीम बनाती है। सहायक पुलिस आयुक्त आकाश मलिक की अगुआई में पांच सदस्यों की ये टीम अपनी सतर्कता और कार्यकुशलता के माध्यम से सायबर अपराध से निपटने के लिए तत्पर रहती है। पुलिस कमिश्नर इस टीम के साथ एक साइबर विशेषज्ञ और ईथिकल हैकर अनन्या सैनी को जोड़ती है।

शुरुआत में एसीपी आकाश मलिक का अहं आड़े आता है, लेकिन थोड़ी-बहुत रोचक नोक-झोंक के बाद इनकी संयुक्त टीम एक मामले को उसकी तह में जाकर सुलझाने की कोशिश में कामयाब होती है। नौ एपिसोड वाली इस शृंखला के अब तक मात्र दो एपिसोड ही प्रसारित किये गए हैं। अंकुश भट्ट के निर्देशन में मोहित मलिक, शनाया ईरानी और नेहा खान ने अपने अपने किरदार उम्दा तरीके से निभाए हैं। आम लोगों के बीच इस तरह के अपराध से सतर्क रहने के सन्देश के साथ ये वेब सीरीज एक सामाजिक दायित्व के तौर पर भी प्रसंशनीय है।



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