Breaking News

जातिवाद में जकड़े आंचलिक परिवेश की कहानी

राजीव सक्सेना

बड़े पर्दे की फिल्मों के कहीं करोड़ों के कारोबार, तो कहीं चारों खाने चित हो जाने के बीच टीवी धारावाहिकों को लेकर दर्शकों की बढ़ती अरुचि ने ओटीटी मंचों की वेब शृंखलाओं के तीसरे विकल्प को नया आकार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

महानगरों की उथली सी, नीरस जिंदगी में डूबते-उतराते आम जन जीवन की रोजमर्रा की भाग-दौड़ से इतर दूर गांवों के आंचलिक परिवेश, खुली हवा में रचे-बसे, अपनेपन के माहौल का एक अलग ही सुख हुआ करता है। ये बात और कि इस सुख को जातिवाद सरीखी तमाम रुढ़ियों, परंपराओं की विडंबना ने जकड़ा हुआ है।

सोनी लिव की इस माह के प्रारंभ में प्रदर्शित हुई वेबसीरीज निर्मल पाठक की घर वापसी- कुछ इसी तरह के दोहरे मानदंडों को खूबसूरती से उजागर करती है। बिहार के बक्सर जिले की पृष्ठभूमि का एक गांव इस कहानी का आधार है। बरसों पहले किसी वजह से गांव छोड़ कर शहर जा बसे, परिवार के बड़े बेटे का जवान लड़का निर्मल, विपरीत परिस्थितियों में, जब अपनों के बीच पहुंचता है तो उसके साथ बीती खट्टी-मीठी अनुभूतियों को इस सीरीज की पटकथा में बेहद कसावट के साथ पिरोया गया है।

गांव पहुंच कर अपनी मां के अलावा, दादा, चाचा, बुआ, चचेरी बहन, भाई और गांववालों के अपने प्रति उमड़ पड़े स्नेह के साथ ही निर्मल पाठक का सामना होता है, उस कड़वे सच से, जिससे आजादी के कई बरस बाद, आज तक ग्रामीण अंचल उबर नहीं पाया है। अपने पिता के गांव छोड़ने की वजह तलाशता हुआ, साम्यवादी सोच रखने वाला यह युवा तुर्क, कितने ही दिलचस्प घटनाक्रम के बाद खुद को पिता की विरासत के संवाहक के रूप में पाता है।

दरअसल, जातीय समीकरणों की उलझन ही निर्मल के पिता के गांव से मोहभंग का कारण बना, जिसे निर्मल का क्रांतिकारी नजरिया भी कतई बर्दाश्त नहीं कर पाता है। लक्ष्मण की तरह समर्पित चचेरे छोटे भाई के स्थानीय राजनीति में लगाव और उसकी मजबूरी को भी निर्मल सहज तौर पर हजम नहीं कर पाता है। आंचलिक परिवेश में छुपे सुकून को लीलती विडंबनाओं की यह कहानी अंत तक किसी निर्णायक मोड़ पर पहुंचने में असफल ही रही।
राहुल पांडे और सतीश नायर के निर्देशन में वेब शृंखला ‘निर्मल पाठक की घर वापसी’ पर्दे पर बिहार के सुदूर ग्राम्य अंचल की सोंधी महक को बरकरार रखते हुए अभिनय और फोटोग्राफी के जरिये प्रभावित करती है।

निर्मल पाठक की मुख्य भूमिका में वैभव तत्वादी, मां के किरदार में मराठी फिल्मों की पूर्व नायिका अलका अमीन, चाचा के चरित्र में पंकज झा, नेताजी के किरदार में विनीत कुमार और भाई के रोल में आकाश माखीजा ने न्याय किया है। भोजपुरी में कुछ संवाद और पार्श्व में बजता लोक संगीत इस शृंखला को आकर्षक बनाते हैं। ‘पंचायत’ के बाद इस एक और साफ सुथरी सार्थक वेबसीरीज ने दर्शकों के जायके को फिर एक बार बदलने की कोशिश की है।



from Entertainment News (एंटरटेनमेंट न्यूज़) In Hindi, बॉलीवुड समाचार, Manoranjan News, मनोरंजन समाचार | Jansatta https://ift.tt/xAOvzpT

No comments